बुधवार, 30 अप्रैल 2008

आँखों के सामने घटता हुआ घटनाक्रम चाहे कितना ही गलत हो अथवा सही हो पूर्ण विश्वास योग्य होता है ठीक इसी प्रकार जब कैमरे की आँख देख रही हो तो झुठ और सच के बीच कोई परदा हीं रहता। डाक्युमेंटरी फिल्में जब भी बनती है तो इसी मकसद से बनती है। समाज में दिन प्रतिदिन घटने वाले वे विषय जो सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जीवन में असर डालने में कामयाब हो। जिस तरह साहित्य को समाज का आईना बताया गया है उसी तरह डाक्युमेंटरी फिल्में भी समाज का सटीक पक्ष दिखाती हैं। समाज में फैली विसंगतियाँ, वर्ग, लिंग, मानवाधिकारों का हनन, आधुनिकता से उपजी समस्याएँजैसे विषय डाक्युमेंटरी फिल्मों के मुख्य विषय बनते हैं। डाक्युमेंटरी को वास्तविकता के साथ प्रयोग कहा गया है। चूंकि इस प्रकार की फिल्मों का निदेशक मुख्यत कलाकार प्रवृति का स्वामी होता है। इसलिये उसकी रूचि, उसकी व्यक्तिगत विचारधारा, सामाजिक और राजनैतिक विचारधारा भी फिल्म बनाते वक्त अपना पक्ष सामने रखती है। यह फिल्म निदेशक की समझबूझ पर निभर करता है कि वह किस विषय को अपनी फिल्म में सार्थकता से उठाता है।सामान्यत डाक्युमेंटरी फिल्म देखने वालों को शिक्षित करती है। उन्में एक या कई लक्षय रहते हैं। किसी खास विषय को चित्रित कर द्रश्य माध्यम से दशानें और जानकारियों को सुरक्षित करने का काम डाक्युमेंटरी फिल्में बखुबी निभाती हैं। मनुष्य की किसी भी तरह के रेकॉर्ड को सहेज कर रखने की प्रवृति उतनी ही पुरानी है जितना की मानव खुद। मनुष्य की इसी प्रवृति के कारण डाक्युमेंटरी फिल्में अस्तित्व में आयी। डाक्युमेंटरी फिल्मों की शुरूआत १९२० के अंत में हुयी थी। डाक्युमेंटरी फिल्में सिनेमा का महत्वपुर्ण और बहुत विविधापुर्ण अंग है। सबसे पहले घुमती तस्वीरों को फिल्मानें के लिये थोमस ऐडिस्न के कैमरे का इस्तेमाल किया था। डाक्युमेंटरी फिल्मों की शुरूआत १९२० के अंत में हुयी। पिछले बीस वर्षो से इनका स्वरूप लगातार बदलता रहा है। समय बीतने के साथ साथ तकनीक के विकसित होने के कारण डाक्युमेंटरी फिल्मों की गुणवता का विकास हुआ। १९५० और ६० में डाक्युमेंटरी फिल्मों का प्रसारण टेलीविजन पर होने लगा। संसार भर में डाक्युमेंटरी फिल्मउत्सव होने लगे जिससे दर्शकों को पूरी दुनिया की डाक्युमेंटरी फिल्में एक ही स्थान पर देखने की सुविधा मिल गयी। फिल्मों के विषय और उन्की गुणवता पर उन्हें पुरस्कार मिलने लगे जिससे फिल्म निदेशकों के काम को सम्मान मिलने लगा तथा उत्सवों से उनकी फिल्मों का व्यापक प्रचार प्रसार होने लगा। जिसमें युवा निदेशको को डाक्युमेंटरी बनाने का प्रोत्साहन मिलने लगा। डाक्युमेंटरी फिल्मों बनाने के लिये विभिन्न तरीके अपनाये जाने लगे। विडियो टक्नोलोजी का जब विस्तार हुआ तो उसका भरपुर लाभ डाक्युमेंटरी फिल्मों को मिला। जब नया मीडिया उत्पन हुआ तो डाक्युमेंटरी फिल्म निदेशकों ने उन्हें आत्मसात किया।हमारे भारत में आंनद पटवधन, राहुल राय, माईक पाडे जैसे बेहतरीन फिल्म मेकर है जो अपने देश की समस्याओं से लेकर पूरे विश्व के फलक पर अपनी नजर रखते हैं। द सिटी ब्युटीफुल जैसी फिल्म बनाने वाले राहुल राय की संस्था विकल्प डाक्युमेंटरी फिल्मों का एक सशक्त मंच है जो इस पकार की फिल्मों के जरिये समाज में अपनी जोरदार भुमिका लेकर आते है। विश्ववयापी फिल्मों में माईकल मुर की फिल्म फेरनहाईड ९,११ ने बुश और अलकायदा के बीच मधुर समबन्धों को उजागर किया था उसने संसार भर में एक उतेजना फैलाई थी और एक बडे सच का परदाफाश किया था।आने वाले समय में डाक्युमेंटरी फिल्मों का भविष्य बेहद उज्जवल रहेगा और जीवन के अनेक नये आयामों की जानकारी जनसाधारणों को मिल सकेगी।
विपिन चौधरी